नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 से 151 तक नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General - CAG) का वर्णन है। भारत में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक 1919 की अधिनियम पर आधारित है। 1935 के अधिनियम में इसे अधिक महत्व दिया गया और प्रांतों के लिए स्वतंत्र लेखा परीक्षक की नियुक्ति की गई। देश स्वतंत्र होने के पश्चात महालेखा परीक्षक का नाम बदलकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कर दिया गया। अनुच्छेद 148 (1) में वर्णन है कि भारत में एक नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक होगा जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति महोदय 6 वर्षों के लिए करेंगे। इसे हटाने की प्रक्रिया वही है जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का है। यह अपने पद का 65 वर्ष की आयु पूरी होने तक या 6 वर्षों तक रह सकते हैं। इन्हें कदाचार अथवा कार्य करने में असमर्थ होने पर संसद के दोनों सदनों के समावेशन पर हटाया जा सकता है।अनुच्छेद 148 (2) वर्णन है कि पहले राष्ट्रपति के समक्ष शपथ ग्रहण करेंगे। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक सरकार के प्रति उत्तरदाई ना होकर संविधान के प्रति उत्तरदाई होते हैं।
अनुच्छेद 148 (3) के दांत इनके वेतन और सेवा शर्तों का वर्णन है वेतन भत्ता संचित निधि से दिया जाता है इनका वेतन पहले 90000 था जिसे बढ़ाकर 2,50,000 कर दिया गया। कार्यकाल के दौरान वेतन में कमी नहीं किया जा सकता है।अनुच्छेद 148 (4) में वर्णन है कि पद से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात किसी पद पर कार्य नहीं करेंगे अपवाद स्वरूप A. K. चंदा 1961 में अवकाश के बाद तीसरे वित्त आयोग के अध्यक्ष बने थे। अनुच्छेद 149 मैं नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्यों का वर्णन है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्य
- इसका मुख्य कार्य व्यय विधि संबद्ध किया गया है या नहीं इसका ध्यान रखना है।
- यह धन की लेन-देन का हिसाब भी रखता है और धन संबंधी लेखों की जांच भी करता है।
- वित्तीय कुशलता मितव्ययिता और प्रशासन में कुशलता लाता है।
- केंद्र - राज्य के अनुरोध पर सरकारी विभागों कि आय की जांच करता है।
- संचित निधि से धन निकासी पर इसका कोई अधिकार नहीं है परंतु ब्रिटेन में CAG को अधिकार प्राप्त है।
अनुच्छेद 151 में वर्णन है कि संघ का प्रतिवेदन राष्ट्रपति को वित्त मंत्री के माध्यम से दिया जाएगा और राज्य में राज्यपाल को दिया जाएगा और रक्षा विभाग में CAG का नियंत्रण नहीं है।