भारत में बेरोजगारी | Unemployment in India :
अर्थव्यवस्था में व्यापक परिवर्तन ना होने पाने के कारण बेरोजगारी उत्पन्न होती हैे। बेरोजगारी का अर्थ लोगों को काम ना मिल पाना होता है। 1929 के विश्वव्यापी मंदी के कारण भारत में मुख्य रूप से बेरोजगारी उत्पन्न हुई।बेरोजगारी के कारण
- अर्थव्यवस्था में विकास की गति का धीमा होना
- ग्रामीण श्रमशक्ति का शहरों की ओर पलायन
- औद्योगिक क्षेत्र में पूंजी प्रधान तकनीक को अपनाया जाना
- व्यावसायिक शिक्षा को कम महत्व देने वाली अनुपयुक्त शिक्षा प्रणाली
- जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
बेरोजगारी के प्रकार
अनैच्छिक बेरोजगारी
जब कोई व्यक्ति प्रचलित वास्तविक मजदूरी से कम वास्तविक मजदूरी पर कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है, चाहे वह कम नकद मजदूरी स्वीकार करने के लिए तैयार न हो, तब इस अवस्था को अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं।स्वैच्छिक बेरोजगारी
स्वैच्छिक बेरोजगारी से आशय हैं प्रचलित मजदूरी की दर पर कार्य उपलब्ध हो परंतु व्यक्ति कार्य के लिए तैयार ना हो।चक्रीय बेरोजगारी
चक्रीय बेरोजगारी व्यापारिक शिथिलता के कारण उत्पन्न होती है। इसकी स्थिति में अस्थाई होती है। खासकर के विकसित देशों में इस तरह की बेरोजगारी उत्पन्न होती है।संरचनात्मक बेरोजगारी
औद्योगिक क्षेत्र में संरचनात्मक परिवर्तन के कारण ऐसी बेरोजगारी उत्पन्न होती है। अल्पविकसित और पिछड़े देशों में इस तरह की बेरोजगारी देखने को मिलती है। भारत में बेरोजगारी का अधिकांश स्वरूप संरचनात्मक है। यह बेरोजगारी दीर्घकालीन होती है।प्रच्छन्न बेरोजगारी
ऐसी बेरोजगारी कृषि के क्षेत्र में देखने को मिलती है क्योंकि आवश्यकता से अधिक श्रमिक कृषि क्षेत्र में लगे होने के कारण उसकी उत्पादकता क्षमता शून्य होती है।मौसमी बेरोजगारी
मौसमी बेरोजगारी के अंतर्गत किसी विशेष की मौसम या अवधि में उत्पन्न हुई बेरोजगारी आती है। ऐसी बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में मिलती है।तकनीकी बेरोजगारी
यह विकसित देशों में देखने को मिलती है।घर्षणात्मक बेरोजगारी
बाजार की दशा में परिवर्तन यानी मांग और पूंजी में परिवर्तन के कारण इस प्रकार की बेरोजगारी उत्पन्न होती है। इस बेरोजगारी में कुछ समय के लिए लोगों को रोजगार से वंचित रहना पड़ता है। यह बेरोजगारी विश्व के लगभग सभी अर्थव्यवस्थाओं में पाई जाती है।ग्रामीण बेरोजगारी
इसी कृषिगत बेरोजगारी भी कहा जाता है। भारत में ग्रामीण बेरोजगारी एक प्रमुख समस्या है।शहरी बेरोजगारी
शहरी क्षेत्र में प्रायः खुली किस्म की बेरोजगारी पाई जाती है। इसमें औद्योगिक बेरोजगारी एवं शिक्षित बेरोजगारी को शामिल किया जाता है।शिक्षित बेरोजगारी
शिक्षित बेरोजगारी के अंतर्गत शिक्षित श्रमिक आते हैं। इनकी कार्य क्षमता अन्य श्रमिकों से अधिक होती है किंतु उन्हें अपनी योग्यता अनुसार कार्य नहीं मिल पाता इसीलिए बेरोजगार रहते हैं। वर्तमान समय में भारत में शिक्षित बेरोजगारी एक गंभीर समस्या है।रोजगार का शास्त्रीय सिद्धांत
रोजगार की शास्त्रीय सिद्धांत का प्रतिपादन फ्रांसीसी अर्थशास्त्री जे बी सॉ ने किया था । इन के अनुसार "यदि अर्थव्यवस्था निर्बाध या स्वतंत्र रूप से संचालित हो रहा हो तो पूर्ति अपनी मांग को स्वयं उत्पन्न करती है"। लेकिन आधुनिक अर्थशास्त्री प्रोफेसर केंद्र ने इस मान्यता को गलत साबित किया और बतलाया कि "पूर्ति अपनी मांग को स्वत: उत्पन्न नहीं करती और अर्थव्यवस्था में अति उत्पन्न हो जाता है। अति उत्पादन बेरोजगारी का मुख्य कारण है।" केन्स ने अपनी पुस्तक General Theory of Employment Interest and Money (1936) में बतलाया की "सामर्थ्य मांग या प्रभावपूर्ण मांग की कमी ही बेरोजगारी का मुख्य कारण है।" प्रोफेसर केन्स के अनुसार अर्थव्यवस्था में दो प्रकार की मानदेय होती है :- उपभोक्ता वस्तु की मांग
- विनियोग वस्तु की मांग