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19 April 2018

उपभोग | Consumption (Economics)

उपभोग | Consumption

साधारण बोलचाल की भाषा में उपयोग से आशय किसी वस्तु के प्रयोग से है। परंतु अर्थशास्त्र में उद्योग से आशय किसी वस्तु की उपयोगिता को नष्ट करने से है। परंतु उपयोगिता को नष्ट करने की क्रिया को केवल उपभोग नहीं कह सकते साथ ही आवश्यकता की पूर्ति भी होनी चाहिए। उत्पादन में वस्तु की उपयोगिता का सृजन तथा उपभोग में नष्ट होता है। मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रत्यक्ष एवं अंतिम प्रयोग उपभोग कहलाता है। उपभोग इन चार बातों से अभिप्रेरित होती है –
  1. 1. बहुत से मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति होती है
  2. 2. संतुष्टि में उपयोगिता का नाश होता है
  3. 3. संतुष्टि वस्तु तथा सेवा के उपयोग से होती है
  4. 4. वस्तु तथा सेवा का प्रत्यक्ष एवं अंतिम प्रयोग उपभोग है।
उपभोग के दो परयोग हैं – सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक। उपभोग से समाज के सभी वर्गों को लाभ होता है। जर्मन अर्थशास्त्री प्रोफेसर एंजिल ने विभिन्न वर्गों के पारिवारिक बजट के आधार पर उपभोक्ता नियम दिया। इस नियम को ही Angel's law of conversion कहते हैं। इसमें इन्होंने बतलाया की कम आय वाले व्यक्ति अधिक उपयोग करते हैं और अधिक आय वाले व्यक्ति उपभोग पर कम खर्च करते हैं। एंजिल्स के अनुसार आय में वृद्धि से उपभोग का ह्रास होता है और अन्य वर्ग जैसे की शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, मकान आदि पर ज्यादा खर्च करते हैं। यानि एंजिल्स लॉ के अनुसार बजट के निर्माण में मदद मिलता है और उपभोग संबंधित व्यय का ब्यौरा मिलता है।

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