निष्क्रिय गैस (Noble gas / inert gas) को अक्रिय गैस भी कहा जाता है, क्योंकि यह ना तो इलेक्ट्रॉन मुक्त करता है और ना ही ग्रहण करता है। इसकी प्रकृति निष्क्रिय होती है। नोबल गैस की संख्या 6 है: हीलियम (He), नियॉन (Ne), आर्गन (Ar), क्रिप्टोन (Kr), जेनॉन (Xe) एवं रेडॉन (Rn)। यह आवर्त सारणी के शुन्य वर्ग में पाया जाता है।
मेंडलीफ के द्वारा जो 63 तत्वों का आवर्त सारणी बनाया गया था, उनमें अक्रिय गैसों को स्थान नहीं दिया गया था क्योंकि उस समय इन गौसों की खोज नहीं हुई थी।
हीलियम का उपयोग मौसम संबंधी अध्ययनों में तथा वायुयान के टायर में भरने के लिए किया जाता है। ब्रह्मांड में हाइड्रोजन (71%) के पश्चात सबसे अधिक हीलियम (26.5%) पाया जाता है। हाइड्रोजन के बाद हीलियम सबसे हल्का गैस है। गुब्बारे में हीलियम भरा जाता है।
तत्पश्चात 1898 में रैम्जे तथा ट्रेवरस ने वायु प्रभावजन विधि से निऑन, जेनॉन और क्रिप्टन गैस को प्राप्त किया। विसर्जन लैम्पों, ट्यूबों तथा प्रदीप्त बल्बों में निऑन का प्रयोग किया जाता है।
मेंडलीफ के द्वारा जो 63 तत्वों का आवर्त सारणी बनाया गया था, उनमें अक्रिय गैसों को स्थान नहीं दिया गया था क्योंकि उस समय इन गौसों की खोज नहीं हुई थी।
आर्गन (Argon)
सर्वप्रथम 1894 में Lord Rayleigh और William Ramsay के द्वारा आर्गन गैस का खोज किया गया तथा 1894 में आर्गन गैस की खोज की पुष्टि की गई। ग्रीक या यूनानी भाषा में आर्गन का अर्थ लेजी या निकम्मा होता है। आर्गन का उपयोग मिश्र धातुओं के अर्क वेल्डिंग में निष्क्रिय वातावरण उत्पन्न करने के लिए तथा बिजली के बल्ब में भरने के लिए किया जाता है।हीलियम (Helium)
1868 ई. में सूर्य के सर्वग्रास ग्रहण के अवसर पर सूर्य के वर्णमंडल के स्पेक्ट्रम में एक पीली रेखा देखी थी। जानसेन ने इस रेखा का नाम D3 रखा और सर जे. नार्मन लॉकयर इस परिणाम पर पहुँचे कि यह रेखा किसी ऐसे तत्व की है जो पृथ्वी पर नहीं पाया जाता। उन्होंने ही हीलियम (ग्रीक शब्द, शब्दार्थ सूर्य) के नाम पर इसका नाम हीलियम रखा। 1895 में रैम्जे द्वारा यूरेनियम खनिज में हीलियम गैस की उपस्थिति को ज्ञात किया गया।हीलियम का उपयोग मौसम संबंधी अध्ययनों में तथा वायुयान के टायर में भरने के लिए किया जाता है। ब्रह्मांड में हाइड्रोजन (71%) के पश्चात सबसे अधिक हीलियम (26.5%) पाया जाता है। हाइड्रोजन के बाद हीलियम सबसे हल्का गैस है। गुब्बारे में हीलियम भरा जाता है।
तत्पश्चात 1898 में रैम्जे तथा ट्रेवरस ने वायु प्रभावजन विधि से निऑन, जेनॉन और क्रिप्टन गैस को प्राप्त किया। विसर्जन लैम्पों, ट्यूबों तथा प्रदीप्त बल्बों में निऑन का प्रयोग किया जाता है।