सातवाहन वंश - Satavahana Empire
1st century BCE–2nd century CE
कण्व वंश के संस्थापक वासुदेव थे तथा अंतिम शासक सुशमी थे जिनकी हत्या आंध्र जातीय सिमुक ने किया और सातवाहन वंश की स्थापना किया। सातवाहन वंश की स्थापना 27 ईसापूर्व में हुई। पुरान में सातवाहन वंश को आंध्र जातीय कहां गया है। सातवाहन शासक को दक्षिणाधिपति कहा गया है। मूल निवास स्थान कृष्णा और गोदावरी के मध्य आंध्रप्रदेश रहा होगा। सातवाहन की कुल 23 शासक हुए। सातवाहन वंश का वास्तविक शासक शातकर्णी प्रथम था इनकी पत्नी नयनिका ने नानाघाट अभिलेख बनवाई थी जिनसे सातवाहन वंश के इतिहास की जानकारी मिलती है। शातकर्णी प्रथम ने श्रीसात नामक सिक्का चलाया। उन्होंने प्रतिष्ठान को राजधानी बनाया जिनकी पहचान महाराष्ट्र के औरंगाबाद से की जाती है। शातकर्णी प्रथम ने दो अश्वमेघ तथा एक राजसु यज्ञ करवाया था तथा दक्षिणपंथ की उपाधि धारण किया।इनकी मृत्यु के बाद पुत्र शक्ति श्री शासक बने इनके अल्पवयस्क होने के कारण मां नयनिका संरक्षिका बनी। सत्कर्मी प्रथम के बाद सातवाहन का इतिहास अंधकारमय हो गया।
17वां शासक हाल था यह विद्वान थे इन्होंने गाथा सप्तशती नामक ग्रंथ की रचना करवाया। इनके दरबार में बृहदकथा के लेखक गुणाढ्य और कन्त्रक के लेखक सर्ववर्मन रहते थे।
सातवाहन का पुनरुद्धारक गोमती पुत्र सातकर्णि ने 106 से 136 ई० पूर्व तक शासन किया। इन्होंने महाराष्ट्र के शक शासक नहपाल को परास्त किया। इनके तीन अभिलेख है दो नासिक एक कार्ले। इनका साम्राज्य अरब सागर, हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी तक फैला था यानी कि इनके इनके घोड़ा ने तीनों समुद्र का पानी पिया इसीलिए इसे त्रि समुद्र तोय पिता वाहन कहा जाता है। इन्हें क्षत्रियों के दर्द को चूर करने वाला कहा गया है। नासिक अभिलेख में इन्हें वेदों का आश्रय और अद्वितीय ब्राह्मण कहा गया है।
इनके पश्चात वषष्ठी पुत्र कुलुमावी शासक बने इन्हें रुद्रदामन से हार का सामना करना पड़ा। इन्होंने आंध्र प्रदेश पर आधिपत्य कायम किया। यह वंश मातृ प्रधान था। सातवाहन ने सर्वप्रथम ब्राह्मणों को भूमि दान देने की प्रथा चलाया। बौद्ध धर्म का काफी विकास हुआ अमरावती में स्पुत का पुनर्निर्माण करवाया। दक्षिण में चांदी की कमी के कारण सीसे का सिक्का जारी किया।