सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के संबंध में सर्वप्रथम जानकारी 1826 चार्ल्स मैसेन ने दिया। विधिवत रूप से हड़प्पा की खुदाई 1921 में जॉर्ज मार्शल के नेतृत्व में दयाराम साहनी ने किया तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई जॉन मार्शल के नेतृत्व में 1922 में रखाल दास बनर्जी ने किया। रेडियोकार्बन C14 के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2350 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व मानी जाती है। सिंधु घाटी सभ्यता या सैंधव सभ्यता को प्रागैतिहासिक अथवा कांस्य युग में रखा गया है।
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Image by Avantiputra7 Wikimedia Commons
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हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना
हड़प्पा से मोहनजोदड़ो की दूरी 483 किलोमीटर है। हरप्पा सभ्यता पूरब से पश्चिम 600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण से 1100 किलोमीटर है। हड़प्पा सभ्यता का कुल क्षेत्रफल 1299600 वर्ग किलोमीटर है। इस सभ्यता का समय ह्वीलर के अनुसार 2500 ईसा पूर्व से 1600 ईसा पूर्व माना जाता है। इसके पूर्वी भाग को नगर किला तथा पश्चिमी भाग को दुर्ग कहा जाता जाता है। हड़प्पा से 12 अन्नागार के साक्ष्य मिले हैं, 14 भट्टी के अवशेष मिले हैं। हड़प्पा से ही नृत्यांगना की मूर्ति निर्वस्त्र पुरुष का धर R73 पाया गया है। समाधि को डोलमन कहा जाता था। हड़प्पा से स्वास्तिक, कपास, तांबा का दर्पण, जौ तथा गेहूं के अवशेष तथा चना और सरसों के साक्ष्य मिले हैं। हड़प्पा से 36510 मोहरे भी प्राप्त हुए हैं। स्वस्तिक का चिन्ह हड़प्पा सभ्यता की देन है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो को पिगट ने जुड़वा राज्य कहा राज्य कहा। इस सभ्यता का विनाश सुमेरियन सभ्यता से हुआ।
लोथल (गुजरात)
लोथल से सबसे प्राचीन बंदरगाह मिला है इस बंदरगाह से मिस्र एवं मोसोपोटामिया से व्यापार होता था। लोथल से ही चावल तथा रंगपुर से भूसी के अवशेष मिले हैं।
गुजरात के सूतकोटा से पत्थरों के भवन, नियमित आवास, कब्रिस्तान तथा घोड़ों की हड्डी मिला है जबकि धौलावीरा से घोड़े की कलाकृति मिला है।
सिंधु सभ्यता का सबसे पश्चिमी स्थल कच्छ का बेसलपुर है।
गुजरात के कंताशी से लंबी सुराही, मिट्टी का खिलौना गाड़ी, दो अंगूठियां तथा तांबे की चूड़ी प्राप्त हुआ है। सौराष्ट्र से लाल तथा काला मृदभांड एवं हाथी के अवशेष मिले हैं। महाराष्ट्र के देमा बाद से युवा पुरुष का शव मिला है।
सिंधु सभ्यता त्रिभुजाकार था। अपवाद स्वरुप बनवारी जो चतुर्भुजाकर था। बनबारी में जल निकासी की व्यवस्था नहीं थी। सिंधु घाटी सभ्यता का प्राचीन नाम मेहूला था। सिंधु घाटी सभ्यता के निवासी ऊनी और सूती वस्त्रों का प्रयोग किया करते थे। यह लोग नाव से भी परिचित थे।
इन लोगों का प्रमुख देवी-देवता मातृ देवी तथा शिव थे। पवित्र वृक्ष पीपल तथा पक्षी में बत्तख था। कुंवर वाला सांड इन लोगों के लिए पूज्यनीय था। स्त्रियों की मिट्टी की मूर्तियां अधिक संख्या मिलने के कारण यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक था। देवी देवताओं के संबंध में सबसे अधिक जानकारी मोहनजोदड़ो से मिली है। ऋग्वेद में सिंधु सभ्यता को हरयुपिया कहा गया है। सबसे अच्छी किस्म का जौ बनवाली से मिला है। सिंधु सभ्यता के प्रवर्तक सुमेरियन थे। ह्वीलर के अनुसार इसके प्रवर्तक दास एवं दस्यु थे।
ये लोग निम्न वस्तुओं का आयात करतेे थे :-
मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान)
मोहनजोदड़ो से एक विशाल स्नानागार भी मिला है इसकी लंबाई 11.88 मीटर × 7.01 मीटर है। जल की आपूर्ति कुंआ से होती थी। अन्नागार के दक्षिण में एक सभा भवन भी मिला है जो 20 स्तंभों पर खड़ा है। मोहनजोदड़ो को मृतकों का टीला या सिंध नाग ( Mound of the Dead Men ) कहा जाता है। मोहनजोदड़ो से 6 भट्टियों के के अवशेष 56% मृदभांड सेलखड़ी से निर्मित 1398 सिक्का मिला है। मोहनजोदड़ो से ही घोड़े़े के दांत मिला है। इस सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण चीज नगर नियोजन था। इसका मुख्य सड़क 33 फीट का है। मोहनजोदड़ो से शतरंज की गोटी मिला है। माना जाता है कि मोहन जोदड़ो का 7 बार विनाश तथा 7 बार निर्माण हुआ।चनहुदड़ो (पाकिस्तान)
चनहुदड़ो की खुदाई N. G. मजूमदार के द्वारा किया गया यह एक औद्योगिक नगर था यहां से पक्की ईंटों का मकान मिला है, यहां से मकाऊ का कारखाना, अर्धवृत्ताकार मंदिर, मिट्टी का हल, जौ के दाने तथा लघु नारी की मूर्तियां भी मिली है।चनहुदड़ो से लिपिस्टिक, दर्पण, आभूषण में कंठहार, कर्णफूल, हौसली, कड़ा, टीका तथा सोने का कंगना मिला है।रोपड़ (पंजाब)
स्वतंत्रता के बाद सर्वप्रथम खुदाई पंजाब के रोपड़ में हुआ। रोपड़ से मनुष्य के साथ कुत्ता को दफनाने का प्रमाण मिला है। इससे पहले यह पाषाण काल के बुर्जहोम से मिला था। सिंधु सभ्यता का पतन का अवशेष हरियाणा के भगवान पूरा से मिला है।राखीगढ़ी (हरियाणा)
मोहन जोदड़ो तथा हड़प्पा के बाद सबसे विकसित नगर हरियाणा का राखीगढ़ी था। राखीगढ़ी का उत्खनन 1997-1999 ई. के दौरान अमरेन्द्र नाथ द्वारा किया गया। राखीगढ़ी से प्राक्-हड़प्पा एवं परिपक्व हड़प्पा युग के प्रमाण मिले हैं।कालीबंगा (राजस्थान)
कालीबंगा से जुता हुआ खेत का साक्ष्य, सात हवन कुंड, भूकंप आने का साक्ष्य तथा एक साथ दो फसल उगाने का साक्ष्य मिला है।लोथल (गुजरात)
लोथल से सबसे प्राचीन बंदरगाह मिला है इस बंदरगाह से मिस्र एवं मोसोपोटामिया से व्यापार होता था। लोथल से ही चावल तथा रंगपुर से भूसी के अवशेष मिले हैं।
गुजरात के सूतकोटा से पत्थरों के भवन, नियमित आवास, कब्रिस्तान तथा घोड़ों की हड्डी मिला है जबकि धौलावीरा से घोड़े की कलाकृति मिला है।
सिंधु सभ्यता का सबसे पश्चिमी स्थल कच्छ का बेसलपुर है।
गुजरात के कंताशी से लंबी सुराही, मिट्टी का खिलौना गाड़ी, दो अंगूठियां तथा तांबे की चूड़ी प्राप्त हुआ है। सौराष्ट्र से लाल तथा काला मृदभांड एवं हाथी के अवशेष मिले हैं। महाराष्ट्र के देमा बाद से युवा पुरुष का शव मिला है।
सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य विशेषताए
इस सभ्यता का सबसे महत्वपूर्ण खेल पासा था। समाज पितृसत्तात्मक था और 4 वर्गों में विभक्त था - विद्वान, योद्धा, व्यापारी, श्रमिक। समाज के विभाजन का आधार आर्थिक था। स्त्री-पुरुष धोती एवं साल का प्रयोग करते थे तथा यातायात के लिए बैलगाड़ी प्रयोग में लाया जाता था। तांबा तथा कांसा का उपकरण प्रयोग किया जाता था। लोग नाव से परिचित थे।सिंधु सभ्यता त्रिभुजाकार था। अपवाद स्वरुप बनवारी जो चतुर्भुजाकर था। बनबारी में जल निकासी की व्यवस्था नहीं थी। सिंधु घाटी सभ्यता का प्राचीन नाम मेहूला था। सिंधु घाटी सभ्यता के निवासी ऊनी और सूती वस्त्रों का प्रयोग किया करते थे। यह लोग नाव से भी परिचित थे।
इन लोगों का प्रमुख देवी-देवता मातृ देवी तथा शिव थे। पवित्र वृक्ष पीपल तथा पक्षी में बत्तख था। कुंवर वाला सांड इन लोगों के लिए पूज्यनीय था। स्त्रियों की मिट्टी की मूर्तियां अधिक संख्या मिलने के कारण यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक था। देवी देवताओं के संबंध में सबसे अधिक जानकारी मोहनजोदड़ो से मिली है। ऋग्वेद में सिंधु सभ्यता को हरयुपिया कहा गया है। सबसे अच्छी किस्म का जौ बनवाली से मिला है। सिंधु सभ्यता के प्रवर्तक सुमेरियन थे। ह्वीलर के अनुसार इसके प्रवर्तक दास एवं दस्यु थे।
सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि
सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि की जानकारी 1856 में मिली पूरी जानकारी 1923 में मिली। सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि चित्रात्मक लेकिन भाव सूचक था। इस लिपि में 64 मूल चीन तथा 250 से 400 तक अक्षर था। यह लीपी आरमाइक तथा खरोष्ठी लिपि की तरह दाएं से बाएं लिखी जाती थी। इसे पढ़ने का दावा एस आर राव तथा केएन वर्मा ने किया।सिन्धु घाटी सभ्यता का व्यपार
मोसोपोटामिया वासी कपास के लिए 'सिंधु' शब्द का प्रयोग करते थे। यूनानी कपास के लिए 'सिंजल' शब्द का प्रयोग करते थे। व्यापार वस्तु विनियम प्रणाली पर आधारित था प्रतीक के रूप में सांकेतिक मुद्रा मुहर या सेलखड़ी का प्रयोग किया जाता था। मुहरों पर पर सबसे अधिक कुंवर वाले सांड का चित्र मिला है। यह मुहर वर्गाकार तथा बेलनाकार होते थे। सबसे अधिक मुहरें मोहन जोदड़ो तथा हड़प्पा से मिला है।सबसे महत्वपूर्ण सीप उद्योग था। व्यापार का प्रधान केंद्र हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो था। व्यापार जल एवं स्थल दोनों मार्गो से होते थे। उस समय का प्रमुख बंदरगाह का प्रमुख बंदरगाह उल-बिनमूल तथा मगन था। माप के लिए बाट का प्रयोग किया जाता था। बाट दशमलव गुणज पद्धति पर आधारित था।ये लोग निम्न वस्तुओं का आयात करतेे थे :-
- अफगानिस्तान और ईरान से टीन तथा चांदी
- खेत्री से ताम्बा
- ईरान और भारत से सोना
- महाराष्ट्र से नीलमणि
- दक्षिण भारत से शंख
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन
सिंधु सभ्यता के पतन का निम्नलिखित कारण माने जाते हैं :–- सिंधु नदी में बाढ़ का आना।
- बाह्य आक्रमण
- प्लेग महामारी
- जलवायु का परिवर्तन होना